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संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

संतुलित आहार के लिए पूसा संस्थान की उन्नत किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली जिसे पूसा संस्थान के नाम से जाना जाता है ने अपने 115 वर्षों के सफर में देश की कृषि को सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हरित क्रांति के जनक के रूप में पूसा संस्थान में विभिन्न फसलों की बहुत सारी किस्में निकाली हैं जिनसे हम अपने देश की जनता को संतुलित आहार दे सकते हैं और अपने किसानों के लिए खेती को लाभदायक बना सकते हैं। दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लिए पूसा सस्थान द्वारा निकाली गई कुछ फसलों की मुख्य किस्में व उनकी विशेषताओं के विषय में हम आपको बता रहे हैं।

संतुलित आहार की उन्नत किस्में

धान

Dhan ki kheti 1-पूसा बासमती 1 जिस की पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है 135 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 2-पूसा बासमती 1121 जिसकी पैदावार 50 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं 140  दिन में पक जाती है। पकाने के दौरान चावल 4 गुना लंबा हो जाता है। 3-पूसा बासमती 6 की पैदावार 55 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। आप पकने में 150 दिन का समय लेती है। 4-पूसा बासमती 1509 का उत्पादन 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. यह पत्नी है 120 दिन का समय लेती है. जल्दी पकने के कारण बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. 5-पूसा बासमती 1612 का उत्पादन 51 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है . पकने में 120 दिन का समय लेती है . यह ब्लास्ट प्रतिरोधी किस्म है। 6-पूसा बासमती 1592 का उत्पादन 47.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है .यह पकने में 120 दिन का समय लेती है .बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है. ये भी पढ़े: धान की उन्नत खेती कैसे करें एवं धान की खेती का सही समय क्या है 7-पूसा बासमती 1609 का उत्पादन 46 कुंटल पकने का समय 120 दिन व बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रति प्रतिरोधी है। 8-पूसा बासमती 1637 का उत्पादन 42 क्विंटल प्रति हेक्टेयर अवधि 130 दिन है । यह ब्लाइट प्रतिरोधी है. 9-पूसा बासमती 1728 का उत्पादन 41.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर, पकाव  अवधि 140 दिन है। वह किसी भी बैक्टीरियल ब्लाइट के प्रति प्रतिरोधी है। 10-पूसा बासमती 1718 का उत्पादन 46.4 कुंटल प्रति हेक्टेयर बोकारो अवधि 135 दिन है। यह किस्म बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट के प्रति प्रतिरोध ही है। 11-पूसा बासमती 1692 का उत्पादन 52.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। यह पकने में 115 दिन का समय लेती है। उच्च उत्पादन जल्दी पकने वाली किस्म है।

 गेहूं

gehu ki kheti 1-एचडी 3059 का उत्पादन 42.6 कुंतल प्रति हेक्टेयर व पकाव अवधि 121 दिन है। यह पछेती की किस्में है। 2-एचडी 3086 का उत्पादन 56.3 कुंटल एवं पकाव अवधि 145 दिन है। 3-एचडी 2967 का उत्पादन 45.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर। वह पकने में 145 से लेती है। 4-एच डी सीएसडब्ल्यू 18 का उत्पादन 62.8 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। पीला रतुआ प्रतिरोधी 150 दिन में पकती है। 5-एचडी 3117 से 47.9 कुंटल उत्पादन 110 दिन में मिल जाता है । यह किस्म करनाल बंट रतुआ प्रतिरोधी पछेती किस्म है। 6-एचडी 3226 से 57.5 कुंटल उत्पादन 142 दिन में मिल जाता है। 7-एचडी 3237 से 4 कुंतल उत्पादन 145 दिन में मिलता है। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल 8-एच आई 1620 से 49.1 कुंदन उत्पादन के 40 दिन में मिलता है। यह कंम पानी वाली किस्म है। 9-एच आई 1628 से 50.4 कुंतल उत्पादन 147 में मिलता है। 10-एच आई 1621 से 32.8 कुंतल उत्पादन 102 दिन में मिल जाता है यह पछेती किस्म है। 11-एचडी 3271 किस्म से कुंतल उत्पादन 104 दिन में मिलता है यह अति पछेती किस्म है पीला रतुआ प्रतिरोधी है। 12-एचडी 3298 से 39 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 104 दिन में मिल जाता है।

मक्का

Makka ki kheti 1-पूसा एच एम 4 संकर किस्म से 64.2 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है । यह पकने में 87 दिन का समय देती है और इसमें प्रोटीन अत्यधिक है। 2-पूसा सुपर स्वीट कॉर्न संकर सै 93 कुंतल उत्पादन 75 दिन में मिल जाता है। 3-पूसा एचक्यूपीएम 5 संकर 64.7 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन 92 दिन में मिलता है। बाजरा (खरीफ) 1-पूसा कंपोजिट 701 से , 80 दिन में 23.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 1201 संकर से 28.1 कुंतल उत्पादन 80 दिन में मिलता है।

चना

chana ki kheti 1-पूसा 372 से 125 दिन में 19 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। 2-पूसा 547 से 130 दिन में 18 कुंतल उत्पादन मिलता है।

अरहर

arhar ki kheti 1-अरहर की पूसा 991 किस्म 142 दिन में तैयार होती है व 16.5 कुंदन उत्पादन मिलता है। 2- पूसा 2001 से 18.7 कुंतल उत्पादन 140 दिन में मिलता है। 3- पूसा 2002 किस्म से 143 दिन में 17.7 कुंतल उपज मिलती है। 4-पूसा अरहर 16 से 120 दिन में 19.8 कुंतल उपज मिलती है।

मूंग (खरीफ)

Mung ki kheti 1-पूसा विशाल 65 दिन में 11.5 कुंतल उपज देती है। यह किस्मत एक साथ पकने वाली है। 2- पूसा 9531 से 65 दिन में 11.5 कुंटल उत्पादन मिलता है। यह भी एक साथ पकने वाली किस्म है। 3- पूसा 1431 किस्म से 66 दिन में 12.9 कुंतल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है।

मसूर

masoor ki dal 1- एल 4076 किस्म 125 दिन में पकने वाली है । इससे 13.5 कुंतल उत्पादन मिलता है। 2- एवं 4147 से ,125 दिन में 15 कुंतल उपज मिलती है। दोनों किस्म  फ्म्यूजेरियम बिल्ट रोग प्रतिरोधी है।

सरसों(रबी)

sarson ki kheti 1-जल्द पकने वाली पीएम 25 किस्म से 105 दिन में 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। 2-प्रीति बाई के लिए उपयुक्त पीएम 26 किस्म से 126 दिन में 16.4 कुंतल तक उपज मिलती है। 3-41.5% की उच्च तेल मात्रा वाली पीएम 28 किस्म 107 दिन में 19.9 कुंतल तक उपज दे जाती है। 4-कुछ तेल प्रतिशत वाली पीएम 3100 किस्म से 23.3  कुंतल प्रति हेक्टेयर तक उपज मिलती है ।यह पकने में 142 दिन का समय लेती है। 5- पीएम 32 किस्म से 145 दिन में 27.1 कुंतल उपज दे ती है।

सोयाबीन (खरीफ)

soybean 1-पुसा सोयाबीन 9712 किस्म पीला मोजेक प्रतिरोधी है। 115 दिन में 22.5 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। 2-पूसा 12 किस्म 128 दिन मैं 22.9 कुंतल उपज देती है।

लेखक

राजवीर यादव, फिरोज हुसैन, देवेंद्र के यादव एवं अशोक के सिंह
जानिए अनाज भंडारण के सुरक्षित तरीके

जानिए अनाज भंडारण के सुरक्षित तरीके

किसान भाइयों आपको यह जानकर अवश्य आश्चर्य होगा कि हमारा देश कृषि प्रधान देश है। हम सदियों से अनाज पैदा करते हैं और उसे सुरक्षित भी रखने के अनेक उपाय करते हैं। आज हम आधुनिक खेती करते हैं। इसके बावजूद हमारे देश में अनाज का सुरक्षित भंडारण एक चुनौती बना हुआ है। लगभग 20 से 25 प्रतिशत अनाज उचित भंडारण न होने की वजह से प्रतिवर्ष खराब हो जाता है। इसका खामियाजा किसान भाइयों को उठाना पड़ता है। आज हम अनाज के सुरक्षित भंडारण के खास टिप्स को जानते हैं। इन टिप्स से जहां अनाज भंडारण सुरक्षित रहेगा वहीं आपको नमी, दीमक, चूहों आदि से छुटकारा मिल जायेगा।

अनाज भंडारण पर खतरे के प्रमुख कारण

  1. फसल की कटाई के साथ ही अनाज के भंडारण की सुरक्षा की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिये। फसल कटाई के काम लाये जाने वाले यंत्रों से व मौसम के उतार चढ़ाव से फसल को नमी व कीट का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  2. अनाज भंडारण की गुणवत्ता को हानि पहुंचाने वाले कारणों में कीड़ों का प्रकोप होते हैं। ये कीड़े बीच व मिट्टी के अतिरिक्त फसलों की गहाई, ढुलाई में इस्तेमाल किये जाने वाले यंत्रों के माध्यम से भंडारण तक पहुंच सकते हैं। इसलिये नमी व कीटों का बचाव यही से शुरू करना चाहिये।
  3. अधिक नमी होने के कारण अनाज में कीड़ों का प्रकोप अधिक होता है। इसके अलावा अनाज में फफूंदी लग जाती है। अनाज सड़ जाता है। अनाज खाने या बेचने योग्य नहीं रहता है।
  4. अनाज में कटाइे समय ही कीट लग जाते हैं जो अनाज पर अंडे देने लगते हैं। बाद में इन अंडों से निकलने वाले इल्ली या लट अनाज को खाकर खोखला कर देती है।
  5. चूहे अनाज के दुश्मन हैं। ये खाते कम खराब अधिक करते हैं। चूहों के मल-मूत्र और बाल अनाज में मिल जाने से अनाज खराब हो जाता है।
  6. भण्डारण गृह, कोठियां व बोरे में साफ सफाई न होने से भी कीट लग जाते हैं। क्योंकि भंडारण में अधिकांश पुराने बोरों का इस्तेमाल किया जाता है। इन पुराने बोरों में कीटों के अंडे हो सकते हैं, जो भंडारण में अनाज को बर्बाद करने लगते हैं।
  7. चार ही मुख्य कीट ऐसे हैं जो अनाज को बरबाद कर देते हैं। ये इस प्रकार हैं
  • गेहूं का खपरा: ये कीट गेहूं के अलावा चावल, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा में भी लगता है। यह कीट अनाज में अधिक नमी आने के कारण होता है।
  • आंटे की सुंडी भी ऐसा ही कीट है जो आटा, सूजी, मैदा में तो लगता ही है। साथ ही गेहूं, मक्का, चावल के दानों को भी बरबाद करदेता है।
  • चावल का घुन भी ऐसा कीट है जो चावल के साथ गेहूं, मक्का, जौ, ज्वार, बाजरा आदि अनाजों में लगता है।
  • दालों का भृंग ऐसा कीट है जो सभी प्रकार की दालों को नष्ट कर देता है। ये अरहर, उड़द, चना, मूंग, मटर, मोठ, चंवला, मसूर आदि दालों को पूरी तरह से नष्ट कर देता है।

सुरक्षित अनाज भंडारण के खास उपाय

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1.फसल कटाई व ढुलाई के समय सावधानी

अनाज में कीटों व नमी का प्रभाव फसल की कटाई के साथ ही पड़ने लगता है, जिसकी कोई भी परवाह नहीं करता है। नतीजा यह होता है कि फसल को वहीं से नुकसान होने लगता है और भंडारण में नमी और कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। इसके लिए अनाज की ढुलाई से पहले ट्रैक्टर ट्रॉली को अच्छी तरह से धो कर धूप में सुखा लेना चाहिये। फिर अनाज को भंडारण से पहले 8-10 दिन तक धूप में सुखा लेना चाहिये। सूखे अनाज की पहचान कर लेना चाहिये। अनाज को सूखने के बाद उसे शाम को भंडारण नहीं करना चाहिये। बल्कि रात भर उसे छाया में रख कर ठंडा करना चाहिये। उसके बाद अगले दिन सुबह भंडारण करना चाहिये। 

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2.भंडारण के समय विशेष सावधानी बरतनी चाहिये

भंडारण के समय अनाज को भरने से पहले बोरे या कोठियों को अच्छी तरह से साफ सफाई कर लेनी चाहिये। इन्हें कीट मुक्त करने के लिए उपचार भी कर लेना चाहिये। जैसे अनाज भरने से पहले बोरों को एक प्रतिशत मैलाथियॉन के घोल में आधे घंटे डुबो कर रखें और फिर 2 से तीन दिन तक उलट-पलट कर कड़ी धूप में सुखाएं। तैयार अनाज को सीधे जमीन पर नहीं रखना चाहिये। इससे जमीन से लगने वाले कीड़ों व नमी से बचाव होगा। भंडारण से पहले भूसी, कंकर व कटे-फटे अनाज को अलग निकाल कर साफ कर लेना चाहिये तथा अनाज को कम से कम 15 दिन तक सुखाना चाहिये।

3. भंडारगृह की सफाई करें

भंडारण से पहले भंडारगृह की अच्छी तरह से साफ सफाई करें। भंडारगृह की छत, फर्श, खिड़कियां व दरवाजे सभी को अच्छी तरह से साफ करते उसमें तारपीन का तेल लगा देना चाहिये। फर्श में यदि दरारें हों तो उन्हें सीमेंट से भर देना चाहिये। दीवारों और फर्श के जोड़ों को भी अच्छी तरह से भराई कर देनी चाहिये। सीमेंट की दीवारें हों तो अच्छा वरना कच्ची दीवारों में पपड़ी आदि हों तो उनका भी उपचार कर देना चाहिये। इसके अलावा अनाज रखने से दस दिन पूर्व कमरे में आधा प्रतिशत मैलाथियॉन का घोल बनाकर तीन लीटर प्रतिवर्ग मीटर के हिसाब से छिड़काव करके छोड़ देना चाहिये। अच्छी तरह से सूखने क बाद ही गोदाम में अनाज को रखें। चूहों से बचाव के लिए दरवाजों के नीचे की तरफ लोहे की पत्तियां लगवा देना चाहिये।

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4. कैसे करें सुरक्षित भंडारण

अनाज को नमी से बचाने के लिए भण्डारण करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये। अनाज के भरे बोरों को सीधे फर्श पर नहीं रखना चाहिये। लकड़ी के फट्टों को पहले बिछाया जाना चाहिये। बोरो को जमीन से ऊपर और दीवालों से एक-डेढ़ फिट दूर तथा छत से एक या दो फिट नीचे रखा जाना चाहिये। कोठी में अनाज भरने के लिए पहले कोठी को साफ-सफाई करके उपचारित करना चाहिये। अनाज भरकर ढक्कन लगा देना चाहिये। फिर मोम या हवा को रोकने वाला कोई अन्य लेप लगा देना चाहिये। यदि कोठी को उपचारित करने के लिए पेस्टीसाइड लगाया हो तो उस कमरे में उठना-बैठना, सोना सब बंद कर देना चाहिये। बच्चों को उस कमरे से दूर ही रखना चाहिये। जब कभी अनाज निकालने जाना हो तो मुंह पर कपड़ा बांध कर जायें।

5. परम्परागत तकनीक भी अपनाएं

अनाजों को सुरक्षित रखने के लिए हमेशा से अपनाये जा रहे परम्परागत तरीकों को भी इस्तेमाल किया जाना चाहिये। परम्परागत तरीकों के अनुसार अनाज व दालों में सरसों का तेल लगाकर रखना होता है। राख मिला कर रखना होता है तथा नीम व करंज के पत्ते बिछाकर रखने होते हैं । राख को छान कर व सुखाकर ही मिलाया जाना चाहिये। इससे अनाज व दालें खराब नहीं होतीं तथा कीट अपने आप ही मर जाते हैं।

6. चूहा नियंत्रण

अनाज को बरबाद करने में चूहे बहुत खतरनाक होते हैं। ये जितना अनाज खाते हैं उससे दस गुना अनाज कुतर के बरबाद कर देते हैं। इसके अलावा इनके बाल झड़ने तथा मल-मूत्र से अनाज सड़ जाता है। इसलिये इनका नियंत्रण करना बहुत जरूरी होता है। चूहा नियंत्रण का काम मई जून माह में करना चाहिये क्योंकि उस समय खेत खाली हो जाते हैं। खेतों में लगने वाले चूहे भी आसपास के घरों में हमला करते हैँ। चूहों की रोकथाम के लिए दो से तीन  प्रतिशत जिंक फॉस्फाइड मिलाकर खाने का सामान देना चाहिये। लेकिन चूहे बहुत चतुर होते हैं। इसलिये पहले उन्हें उस तरह की बिना जहर मिली चीजें खिलाने का देना चाहिये। उसके बाद एक दिन जहर मिली वस्तु देने से वो आसानी से खा लेते हैं । 

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 भंडार गृह में चूहों की रोकथाम के लिए बाजरा या किसी अनाज का विष आहार बनाना चाहिये। इसके लिए बाजरा या किसी अन्य अनाज में मूंगफली का तेल लगाना चाहिये। इसके बाद एक किलो अनाज को 20 से 30 ग्राम जिंक फॉस्फाइड पाउडर मिलाकर लकड़ी से अच्छी तरह मिला लें। फिर इनके दानों को भंडारघरों में दीवार के किनारे-किनारे बिखेर देना चाहिये। इन दानों को खा कर चूहे मर जायेंगे। अगले दिन बचे हुए दानों को समेटकर उन्हें नष्ट कर देना चाहिये। भंडारगृह यदि आवास में हो तो कम जहरीली एन्टी कोंगुलेट, ब्रोमोडायोलोन का प्रयोग किया जाना चाहिये। चूहों के लिए विष आहार तैयार करते समय मुंह पर रूमाल आदि बांध लेना चाहिये।

7. दीमक नियंत्रण

दीमक का प्रकोप वैसे खेतों में होता है। फिर भी भंडारगृह की दीवारों या दरवाजों, खिड़कियों में दीमक का प्रकोप हो तो 10 लीटर पानी में एक किलो लिंडेन पाउडर का घोल बनाकर उपचार करेंं। 

8. कीट नियंत्रण के उपाय

अनाज को सुरक्षित रखने क लिए कीट नियंत्रण बहुत आवश्यक है। कीट नियंत्रण दो तरीके से किया जाता है। पहला अनाज को कीटों से बचाने के लिए और दूसरा अनाज में कीटों के लगने के बाद नियंत्रण किया जाता है। कीटों से बचाने के लिए प्रतिमीट्रिक टन अनाज के लिए 30 मिली लीटर ईडीबी एम्पयूल तथा एल्यूमिनियम फॉस्फाइड यानी सेल्फोस की 3 ग्राम की गोली प्रति मीट्रिक टन के हिसाब से डालनी चाहिये। कीटों का आक्रमण होने के बाद 1 ई डी बी एम्पयूल की 3 मिली लीटर प्रति क्विंटल के हिसाब से डालनी चाहिये। यह बहुत ही घातक व जहरीली दवा है, इसे खुले मुंह या खुले में नहीं डालना चाहिये। इससे स्वास्थ्य को काफी नुकसान भी हो सकता है। यह कार्य विशेषज्ञों की सलाह से किया जाना चाहिये।